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कानपुर, 12 जनवरी, 2023: दिनांक 11 जनवरी 2023 को आई आई टी कानपुर के राजभाषा प्रकोष्ठ एवं शिवानी केन्द्र के संयुक्त तत्वाधान में ‘अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी दिवस’ के उपलक्ष्य में “विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी शिक्षा को हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषाओं में उपलब्ध कराने में आने वाली कठिनाइयाँ एवं उनका समाधान” विषय पर एक परिचर्चा का आयोजन किया गया । इस परिचर्चा का उद्घाटन मुख्य अतिथि एवं संस्थान के निदेशक प्रोफ़ेसर अभय करंदीकर जी द्वारा किया गया। इस परिचर्चा में इस संस्थान के प्रोफ़ेसर अदित्य एच केलकर, प्रोफ़ेसर मनोज हरबोला, प्रोफ़ेसर अविनाश कुमार अग्रवाल, प्रोफ़ेसर नचिकेता तिवारी, प्रोफ़ेसर अर्नब भट्टाचार्या तथा केन्द्रीय विद्यालय आई आई टी कानपुर के प्रधानाचार्य श्री आर सी पाण्डेय एवं दिल्ली पब्लिक स्कूल कल्याणपुर की प्रधानाचार्या श्रीमती अर्चना निगम जी ने भाग लिया। परिचर्चा की शुरुआत डा. अर्क वर्मा, प्रोफ़ेसर प्रभारी राजभाषा प्रकोष्ठ के स्वागत संबोधन से हुई । डा. अर्क वर्मा जी ने मुख्य अतिथि, संस्थान के निदेशक प्रोफ़ेसर अभय करंदीकर जी एवं परिचर्चा में शामिल सभी अधिकारियों एवं श्रोताओं का हार्दिक स्वागत एवं अभिनंदन किया । तत्पश्चात मुख्य अतिथि ने अपने सम्बोधन में कहा कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिक का विकास हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में होना अतिआवश्यक है ताकि जो भी अनुसंधान हो रहे हैं वे सरलता से सभी तक पहुँच सकें और आने वाले विद्यार्थियों को सुगमता से उसका लाभ मिल सके । तत्पश्चात प्रोफ़ेसर आदित्य एच केलकर जी के संचालन में इस परिचर्चा को आगे बढ़ाते हुए प्रोफ़ेसर अविनाश अग्रवाल जी ने एक प्रेजेंटेशन के माध्यम से लोगों को अवगत कराया कि हमें इस विषय पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है । उन्होंने बताया कि अपनी मातृ भाषा में काम करने वाले विश्व के तमाम देश आज विकसित देशों की सूची में शामिल हैं जिसमें इज़राइल, जापान, चीन, फ्रांस, जर्मनी आदि का उदाहरण उन्होंने पेश किया । उन्होंने कहा कि यह पूर्ण रुप से असत्य है कि विज्ञान और प्रोद्योगिकी को केवल अंग्रेजी में ही पढ़ा और समझा जा सकता है । अपितु यह हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं में भी संभव है । इसके उपरांत दिल्ली पब्लिक स्कूल, कल्याणपुर की प्रधानाचार्या महोदया ने चिंता जाहिर करते हुए कहा कि आज के समय में बच्चों को हिंदी में विज्ञान और प्रोद्योगिकी का ज्ञान उपलब्ध कराने के लिए हमारे पास उपयुक्त संसाधन नहीं हैं, जिसपर केन्द्रीय विद्यालय के प्रधानाचार्य श्री आर सी पाण्डेय जी ने कहा कि यदि हम विभिन्न विषयों का ज्ञान भी अपनी मातृ भाषा में ही देने का प्रयास करें तो हम संसाधनों का यह अभाव बहुत हद तक कम कर सकते हैं । इसी पर प्रोफ़ेसर मनोज हरबोला जी ने कहा कि हमें बस भाषा पर ही नहीं अपितु उसकी प्रासंगिकता पर भी ध्यान देना होगा । अगर हम किसी भाषा में शिक्षा उपलब्ध कराएं परंतु वह प्रासंगिक न हो और विद्यार्थियों को उसका लाभ न हो तो ऐसी शिक्षा और उसकी भाषा की उपयोगिता व्यर्थ हो जाती है । चर्चा को और रोचक बनाते हुए प्रोफ़ेसर नचिकेता तिवारी जी ने कहा कि हम संसाधनों की कमी की बात करते हैं पर यह ज्यादा विचारणीय विषय नहीं है, सर्वप्रथम हमें समाज से अपने जुड़ाव पर ध्यान देना होगा । एक उच्च शिक्षा प्राप्त होते ही हम समाज से कट जाते हैं और फिर उस सहजता से उस समाज से जुड़ नहीं पाते जिसका मुख्य कारण हमारी शिक्षा अपनी मातृ भाषा में न होना है । इस चर्चा को आगे बढ़ाते हुए प्रोफेसर अर्नब भट्टाचार्या जी ने कहा कि हम अंग्रेजी शिक्षा में उस भाषा और उसके शब्दों में फंसे रह जाते हैं और हम कुछ नया नहीं सोच पाते जबकि अपनी मातृ भाषा में हम बहुत कुछ नया आविष्कार संभव कर सकते हैं जैसा कि इज़राइल ने कर दिखाया है । आज से सत्तर वर्ष पहले तक हिब्रु भाषा कहीं नहीं थी फिर वो कमेटी लाए और उन्होंने अपना सारा विकास अपनी मातृ भाषा हिब्रु में ही किया । यहां तक कि अपने कम्प्युटर कोड भी हिब्रु में बनाए जिसको कि आज हैक करना नामुमकिन है । अत: अपनी मातृ भाषा में ही विज्ञान का विस्तार संभव है । अंत में प्रोफ़ेसर अविनाश अग्रवाल जी ने कहा कि यूरोप के सभी देश जर्मनी, फ़्रांस, इटली आदि अपनी मातृ भाषा में ही कार्य कर के तरक्की कर रहे हैं जबकि वहाँ के रहने वाले बिना किसी अवरोध के एक दूसरे देशों में आते-जाते और घूमते रहते हैं, वे एक दूसरे की भाषा समझते हैं, ऐसे ही भारत में सभी क्षेत्र बेझिझक अपनी भारतीय भाषाओं के साथ उन्नति कर सकते हैं । इस तरह से विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में विकास भी संभव हो सकता है । अंत में यह परिचर्चा, आयोजक डा. अर्क वर्मा, प्रोफ़ेसर प्रभारी राजभाषा प्रकोष्ठ के धन्यवाद ज्ञापन के साथ संपन्न हुई । सम्पूर्ण परिचर्चा बड़ी ही रोचक, उत्साहवर्धक और ज्ञानवर्धक रही जो कि नयी शिक्षा नीति और मातृ भाषा के प्रति लगाव को प्रोत्साहित किया । सभी ने राजभाषा प्रकोष्ठ आई आई टी कानपुर एवं शिवानी केन्द्र का इस परिचर्चा के आयोजन हेतु धन्यवाद किया । आईआईटी कानपुर के बारे में: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) कानपुर की स्थापना 2 नवंबर 1959 को संसद के एक अधिनियम द्वारा की गई थी। संस्थान का विशाल परिसर 1055 एकड़ में फैला हुआ है, जिसमें 19 विभागों, 22 केंद्रों, इंजीनियरिंग, विज्ञान, डिजाइन, मानविकी और प्रबंधन विषयों में 3 अंतःविषय कार्यक्रमों में फैले शैक्षणिक और अनुसंधान संसाधनों के बड़े पूल के साथ 540 पूर्णकालिक संकाय सदस्य और लगभग 9000 छात्र हैं । औपचारिक स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों के अलावा, संस्थान उद्योग और सरकार दोनों के लिए महत्वपूर्ण क्षेत्रों में अनुसंधान और विकास में सक्रिय रहता है। अधिक जानकारी के लिए https://www.iitk.ac.in पर विजिट करें |
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