पत्रिका के स्तर को बनाए रखने के उद्धेश्य से रचनाओं के प्रकाशन के संबंध में निर्णय लेते समय, संपादक मण्डल द्वारा भविष्य में निम्नलिखित नियमों का पालन किया जाना निश्चित किया गया है:
अंतस का प्रकाशन वर्ष में दो बार – 26 जनवरी और 15 अगस्त को - किया जाना तय हुआ है।
अंतस के प्रकाशन को सुनिश्चित करने के लिए हिन्दी सेल एक संपादक मण्डल को नियुक्त करेगा और निदेशक/उपनिदेशक से इसकी स्वीकृति प्राप्त करेगा।
प्रारम्भ में हिन्दी सेल का परियोजना अन्वेषक पत्रिका के मुख्य संपादक का कार्य करेगा। एक निश्चित अवधि के पश्चात संपादक मण्डल नए संपादक का चुनाव कर सकता है। सामान्यतः एक संपादक का कार्यकाल पाँच वर्ष से अधिक नहीं होना चाहिए।
अंतस् की पृष्ठ संख्या 52-60 के आस पास होगी किन्तु समय के साथ इसमें परिवर्तन किया जा सकता है।
सामान्यतः अंतस में प्रकाशन संबंधी वही रचनाएँ स्वीकृत की जाएंगी जो आई आई टी के संकाय सदस्यों, कर्मचारियों अथवा विद्यार्थियों, भूतपूर्व विद्यार्थियों अथवा उनके परिवार के सदस्यों द्वारा प्रेषित की गई हों। किन्तु संपादक मण्डल को यह अधिकार होगा कि वह हिन्दी साहित्य में स्थापित साहित्यकारों अथवा आई आई टी द्वारा समय समय पर निमंत्रित माननीय साहित्यकारों की रचनाएँ भी प्रकाशन के लिए स्वीकृत कर सकता है।
प्रकाशन से पूर्व रचनाओं पर (लेखकों का नाम आदि हटाकर) संस्थान से दो व्यक्तियों की राय जानना आवश्यक होगा। इसके लिए संपादक मण्डल ऐसे लगभग दस व्यक्तियों की सूची तैयार करेगा जिसमें संपादक मण्डल को समय समय पर परिवर्तन का अधिकार होगा।
पत्रिका के स्तर को बनाए रखने के उद्धेश्य से संपादक मण्डल को रचनाओं के प्रकाशन से पूर्व उनमें सम्पादन, संशोधन का अधिकार प्राप्त होगा। विशेषकर काव्य रचनाओं में बिना रचनाकार की स्वीकृति के कोई परिवर्तन नहीं किया जाएगा।
प्रकाशन के लिए किसी भी लेखक को किसी प्रकार का मानदेय/धन नहीं दिया जाएगा।
भविष्य में संपादक मण्डल स्टाफ अथवा विद्यार्थियों में लेखन को प्रोत्साहित करने के लिए पूर्व में प्रकाशित रचनाओं पर उनके लिए पुरुष्कार घोषित कर सकता है।
अंतस में सभी प्रकार के विचारों का स्वागत होगा जो संस्थान परिसर में रहने अथवा काम करने वाले लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं किन्तु किसी भी प्रकार के राजनीतिक विचारों को प्रोत्साहित नहीं किया जाएगा।
अंतस में प्रकाशित रचनाओं में निहित विचारों के लिए संपादक मण्डल अथवा हिन्दी प्रकोष्ठ उत्तरदाई नहीं होगा और इसके लिए पूरी की पूरी ज़िम्मेदारी लेखक की स्वयं की ही होगी।
सर्वसम्मित से यह निर्णय लिया गया कि अंतस् के लिये प्राप्त रचनाओं हेतु एक सब-रिव्यू कमेटी संपादन मंडल द्वारा बनाई जाए तथा न रचनाओं को कमेटी के सदस्यों को इस आशय से प्रेषित किया जाए कि वे संबंधित रचनाओं को अंतस् में प्रकाशित किये जाने के संबंध में केवल हाँ या ना में अपनी संस्तुति दें। यह प्रस्ताव सर्व सम्मति से अनुमोदित किया गया। प्रस्तावित सब-रिव्यू कमेटी के सदस्यों की सूची राजभाषा प्रकोष्ठ बनाकर उसे संपादन मंडल से अनुमोदित करा लेगा।
सभी सदस्यों का मत था कि मुख्य संपादक का कार्यकाल अधिकतम तीन वर्ष का होना चाहिए जिस पर समुचित विचार विमर्श के उपरांत सभी सदस्यों ने अपनी सहमति प्रदान की।
यह भी तय पाया गया कि संपादक मंडल में आवश्यकतानुसार एक या दो ऐसे आमंत्रित सदस्य जिन्हें हिंदी साहित्य का ज्ञान हो, भी रखे जाए। इन सदस्यों का चयन संपादन मंडल द्वारा किया जाएगा। इस प्रस्ताव पर भी उपनिदेशक का अनुमोदन राजभाषा प्रकोष्ठ द्वारा ले लिया जाए।
अंतस् में प्रकाशन हेतु चयनित रचनाएं यथावांछित संशोधनों (वर्तनी से परे) के उपरान्त राजभाषा प्रकोष्ठ द्वारा संबंधित रचनाकारों को प्रेषित की जाएंगी तथा उनकी सहमति के बाद ऐसी रचनाएं प्रकाशित होंगी।
पत्रिका में प्रकाशित रचनाओं के लिए यद्यपि किसी मानदेय की व्यवस्था नहीं है फिर भी निर्णय लिया गया कि यदा-कदा रचनाकारों को लेखन हेतु प्रोत्साहित करने के निमित्त "श्रेष्ठ रचना पुरस्कार" की व्यवस्था की जाए जो केवल विद्यार्थी एवं कर्मचारी संवर्ग के रचनाकारों के लिए प्रभावी रहेगी।
रचनाएं अंतस् के क्रमश: दो अंकों में प्रकाशित न होने की स्थिति में संबंधित रचनाकारों द्वारा उनके बारे में राजभाषा प्रकोष्ठ से जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।